भास्कर न्यूज एजेंसी-
(तहसील संवाददाता – जयपालसिंह यादव की रिपोर्ट )
कायमगंज / फर्रुखाबाद
राष्ट्रीय प्रगतिशील फोरम द्वारा विश्व श्रमिक दिवस पर आयोजित परिचर्चा में वक्ताओं ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के शोषण एवं विभागीय उपेक्षाओं पर चर्चा की जिसमें कहा गया कि भले ही कितने नियम और कानून बने हों किन्तु सभी कागजों तक ही सीमित हैं। श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में कोई अपेक्षित सुधार धरातल पर दिखाई नहीं देता है । परिचर्चा में भाग ले अपने बेवाक एवं निष्पक्ष विचार व्यक्त करते हुए साहित्यकार प्रोफेसर रामबाबू मिश्र रत्नेश ने कहा कि आज चाहे विश्व में साम्यवादी या जनतांत्रिक व्यवस्था हो हर कहीं पूंजीवाद हावी है। आज व्यापार मजदूर व उपभोक्ताओं के शोषण पर ही फल फूल रहा है। विभागीय भ्रष्टाचार, ठेकेदारों ,दलालों की दबंगई के चलते ई. श्रमकार्ड, श्रमिक कल्याण, श्रमिक बीमा, मानवाधिकार संरक्षण जैसी योजनाएं कागजों पर ही दौड़ रही हैं ।महिला श्रमिकों की बदहाली जग जाहिर है ।आखिर विगत सदी में 1 मई को पुलिस की गोलियों से शहीद हुए श्रमिकों के खून को आज क्यों खुले आम बेचा खाया जा रहा है। ख्यातिलब्ध गीतकार एवं समाज सेवी पवन बाथम ने कहा कि : –
मजदूर सही लेकिन नहीं बेजुबान हैं।
अधिकार चाहते हैं नहीं बेईमान हैं।
फुटपाथ पर सोते रहे उनकी बला से हम,
उनके लिए तो शीश महल आलीशान हैं।
हम बंध नहीं सकेंगे पवन हद में न बांधो,
टुकड़े नहीं जमीन के हम आसमान हैं ॥
शिक्षक नेता जगदीश दुबे ने कहा कि बाल श्रम विरोधी कानून होने के बावजूद होटलों, दुकानों ,खेत खलिहानों एवं तंबाकू फैक्ट्री की जहरीली धूल के बीच काम करते बच्चे श्रम विभाग को दिखाई ही नहीं पड़ते हैं। जिन बच्चों को स्कूलों में होना चाहिए वे घरों में झाड़ू पोछा करते, सड़क किनारे पंचर जोड़ते और सब्जी बेचते देखे जा सकते हैं। प्रधानाचार्य शिवकांत शुक्ला एवं पूर्व प्रधानाचार्यअहिवरन सिंह गौर ने कहा कि नौकरी पेशा हो या मजदूर ,महिलाओं की हालत हर कहीं बहुत खराब है ।ईंट भट्टा ,तंबाकू फैक्ट्री जैसी जगहों पर काम करने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल नहीं है। दस्तावेजी प्रमाण से बचने के लिए मनमाना नगद भुगतान करके उनका आर्थिक शोषण किया जाता है। शिक्षक वीएस तिवारी ने कहा कि दुनिया भर की सारी व्यवस्थाओं में मजदूर आज भी जंजीरों से बंधा हुआ है ।उद्योगपति ,श्रमिक नेता, भ्रष्ट विभागीय अधिकारी ,ठेकेदार और दलाल उन्हें बदहाल किये हैं।उसपर महाजनी कर्ज और शराब ने उन्हें कहीं का नहीं रखा है। व्यंगकार कवि डॉ सुनीत सिद्धार्थ ने कहा कि पूंजीवादी व्यवस्था अथवा हो जनतंत्र।
है मजदूर सभी कहीं पीड़ित और परतंत्र।।
छात्र यशवर्धन ने काव्य पाठ द्वारा कहा कि – बेटे लिए प्रधान के मनरेगा के कार्ड।
राशन मुफ्त उड़ा रहे धनपतियों के वार्ड।।
उपेक्षाओं के कारण श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में नहीं हुआ अपेक्षित सुधार
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